22 दिसंबर, 2017

बेचारा गुल्लक !




गुल्लक को हिलाते हुए
चन्द सिक्के खनकते थे
उनको गुल्लक के मुंह से निकालने की
जो मशक्कत होती थी
और जो स्वाद अपने मुंह में आता था
उसकी बात ही और थी
वह रईसी ही कुछ और थी !
....
अब 50 पैसे की क्या बात करें
5, 10 रुपये के सिक्के
भिखारियों को देने होते हैं
!!!
गुल्लक में अब रुपए डाले जाते हैं
उसमें भी
50, 100 में मज़ा नहीं आता
जितना भी निकले कम ही लगता है
अब यह बात भी बेमानी हो गई है
कि बूंद बूंद से घट भरत है
बेचारा घट !
या तो खाली का खाली रहता है
या फिर सांस लेने को उज्बुजाता है
बेचारा गुल्लक !
पहले कितना हसीन हुआ करता था
!!!

14 दिसंबर, 2017

पुनरावृति




दिए जा रहे हैं बच्चों को सीख  !
"ये देखो
वो देखो
ये सीखो
वो सीखो
देखो दुनिया कहाँ से कहाँ जा रही है
!
गांव घर में खेती थी
अपने घर का अनाज
तेल, घी
... सब छोड़कर दूर आए बड़े शहर में
कि तुमलोगों को
आजकल की ज़िंदगी से जोड़ सकें
और तुमलोगों को अपने बड़ों का ख्याल ही नहीं
!!!."

दिए जा रहे हैं बच्चों को दोष !
"ये इतना बड़ा घर तुम्हारे लिए ही लिया
तुम दूसरे शहर में नौकरी कर रहे
वहीं बसना चाहते हो
कोई सोच ही नहीं है
.... !!!
यहाँ रहो
यहीं कुछ करो
बच्चों को बुज़ुर्गों से जुड़ने दो
भाग रही है दुनिया
उन मासूमों को कितना भगाओगे !,"
.....
चलता रहता है सिलसिला
एक हम थे !!!
हर पिछला कदम कुछ और होता है
हर अगला कदम कुछ और
..

08 दिसंबर, 2017

प्रभु




देनेवाले,
तेरा दिया
तुझे ही देकर
सब बहुत खुश हैं !
सोने से तुम्हें सजाकर
डालते हैं एक उड़ती दृष्टि
अपने इर्दगिर्द
और मैं तोते की भांति रटती जाती हूँ
बिन मांगे मोती मिले ...

प्रभु,
तुम देते हो
और बिना माँगे
तुम्हें ही थोड़ा वापस मिल जाता है
!!!

प्रभु
थोड़ा मुझे भी दो न
....पर यकीनन -
तुम्हें जरा भी वापस नहीं दूँगी
हर दिन की तरह
तुम्हारे कमरे में झांकूँगी
रक्षा मन्त्र पढूंगी
कुछ चाह तुम्हारे आगे रखके
काम में लग जाऊँगी
....
झूठमूठ मैं न तो खुद को उलझाऊंगी
न तुम्हें ...
तुम्हीं बोलो,
सीढियां चढ़के
अब कैसे आ सकती हूँ
और सोने के सिंहासन पर
तुम्हारी मूर्ति रखकर क्या करूँगी !
तुम नदी, नाले
धूप, छांव
पहाड़, बियाबान ...
सबकुछ पार करके
सबके सर पर हाथ रखते हो
मेरे ऊपर अपना यह हाथ रखे रहो
जो बन पाए
मुझे देते रहो
मैं उसमें से किसी और को दूँगी
जिसके लिए तुमने ही एक मन दिया है
मैं जानती हूँ
पूजा विधि से अलग
इस बात से
मेरी विधि से तुम भी खुश  रहते हो
....
तुम्हारी इस हँसी के आगे
मैं ही धूप
हवनकुंड
अगरबत्ती
दीया
.... गंगा जल
समझ लो स्वनिर्मित मंत्र भी
......
प्रसाद  .... जो तुम दो
:)

03 दिसंबर, 2017

मैं झांसी की रानी




कंपकंपाता अंधेरा
न झींगुरों की आवाज़
न घने पेड़ के पत्ते ही खड़क रहे हैं
....
हाँ मैं झांसी की रानी
बुंदेले हरबोलों के मुख से
जिसकी कहानियाँ कही गई हैं
...
अति कुछ नहीं सुना तुमने
मैं दक्ष घुड़सवार
तलवार मेरी
विद्युत की गति से चमकती थी
मेरा लक्ष्य
दुश्मनों का सर्वनाश था
मैंने किया भी !
युद्ध संचालन
विपरीत परिस्थितियों में हौसला
तीव्र दृष्टि
शेरनी सी दहाड़
नाना की मुँहबोली बहन थी न
उस भाई ने यह सबकुछ
राखी के बदले दिया था
....
लेकिन यह घुप्प अंधेरा
सांय सांय करता सन्नाटा
मुझे सोने नहीं देता
चलने नहीं देता
ठहरो,
इस बच्चे की उंगली थाम लूँ
उसे अपने होने का एहसास देते हुए
खुद को उसके होने का एहसास दे लूँ
... रात कट जाएगी
फिर मैं
सम्पूर्ण सूरज हो जाऊँगी ...

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...