15 जुलाई, 2017

खुली किताब और




मैं एक खुली किताब हूँ
लेकिन
वक़्त की चाल से प्रभावित होकर
कुछ पन्ने मैंने इसके फाड़ दिए हैं
और कुछ चिपका दिए हैं
कुछ खुली हुई बातों को
मैने रहस्य का जामा पहना दिया है
ताकि होती रहें कुछ अनुमानित बौद्धिक बातें
काटा जाए उसे तर्क कुतर्क से
क्या होगा
क्या होना चाहिए था
क्या हो सकता था ... एक शगल चलता रहे !

बिल्कुल खुली किताब में भी
अनुमान की अटकलें थीं
और सत्य के आगे - अनुमान
सहन नहीं होता न
तो मैंने
ऐसा ही करना मुनासिब समझा !
क्योंकि,
कचरे की ढेर सा
सच अपनी जगह रहता है
जैसे कोई भूखा
कचरे से अन्न का दाना ढूँढ लेता है
वैसे ही सच समझनेवाले
सच को चुपचाप पढ़ लेते हैं ...
.... किताब खुली हो या पन्ने फ़टे हों
वे पढ़ ही लेते हैं !!!

15 टिप्‍पणियां:

  1. खुली किताबों के भी कुछ फटे पन्ने होते हैं तो कुछ नये भी...

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    1. वही तो ... यहाँ मुझे फाड़ना पड़ा
      चिपकाना पड़ा
      कुछ रहस्य बना हुआ है

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  2. किताब खुली हो या पन्ने फ़टे हों
    वे पढ़ ही लेते हैं !!!...बहुत सुन्दर कविता , बधाई

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  3. सत्य के आगे - अनुमान
    सहन नहीं होता .... बिल्कुल सही 👌👌
    वैसे ही सच समझनेवाले
    सच को चुपचाप पढ़ लेते हैं ...
    .... किताब खुली हो या पन्ने फ़टे हों
    वे पढ़ ही लेते हैं !!! ख़ामोशी संवाद करती है उन पलों में !!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सत्य के आगे - अनुमान
    सहन नहीं होता .... बिल्कुल सही 👌👌
    वैसे ही सच समझनेवाले
    सच को चुपचाप पढ़ लेते हैं ...
    .... किताब खुली हो या पन्ने फ़टे हों
    वे पढ़ ही लेते हैं !!! ख़ामोशी संवाद करती है उन पलों में !!!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर..जो पढ़ सकते हैं वे पढ़ ही लेंगे..

    जवाब देंहटाएं
  6. ऐसी किताब जो आत्मा में अपने आप खुलती है । अति सुंदर कहा है ।

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  7. जैसे कोई भूखा
    कचरे से अन्न का दाना ढूँढ लेता है
    वैसे ही सच समझनेवाले
    सच को चुपचाप पढ़ लेते हैं ...
    सच कहा आपने जब कोई भूखा हो तो वह उसे मिटाने का साधन ढूंढ ही लेता है
    बहुत सुन्दर ....

    जवाब देंहटाएं
  8. किताब है तो सही और है तो यहीं
    पन्ने रह गये हैं कहीं किताब कहीं।

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  9. सच समझनेवाले
    सच को चुपचाप पढ़ लेते हैं ...
    .... किताब खुली हो या पन्ने फ़टे हों
    वे पढ़ ही लेते हैं !!!
    बिलकुल सही है...

    जवाब देंहटाएं
  10. खुली किताब होते हुए भी कुछ आवरण भी ज़रूरी है सच सच ही रहता है भले ही लोग कितनी ही अफवाह फैला लें लेकिन निंदा रस के सामने मौन ही बेहतर है और कुछ पन्ने चिपका लिए जाएँ यानि कुछ लीपापोती कर ही ली जाए तो उसमें भी बुराई नहीं .

    भावों को कम शब्दों में प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया है ...

    जवाब देंहटाएं

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