25 मार्च, 2017

दृष्टिगत प्रेम' प्रेम नहीं था




अपने नज़रिये से
जो "प्रेम" लगता है
वह "प्रेम"
हमेशा "प्रेम" नहीं होता
एकांत लम्हों का
सहयात्री होता है !
सहयात्री सुपात्र हो
ज़रूरी नहीं
कुपात्र भी हो सकता है
चक्रवात की हताशा
आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा
किसी के साथ
कोई भी रूप ले लेती है !!
उस वक़्त हर निर्णय
जायज लगता है  ...
यूँ
जायज हो
या नाजायज
तय करते रास्तों में
सूक्ति कौन सुनता है ?
*****
बिना सूक्ति के ही निर्वाण है
बिना सूक्ति के ही वनवास
बिना सूक्ति के विनाश
.... !!!
वक़्त की माँग जो निर्धारित करे
खत्म करे
अनुभवी बना दे  ...
सामयिक प्रेम अनुभव देता है
अनुभव स्पष्ट करता है
दृष्टिगत प्रेम' प्रेम नहीं था
डूबते तिनके का सहारा था
... 

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...