30 सितंबर, 2010

पहचान चाहिए


सब बड़े हो गए
वे पौधे भी
जो मेरे इर्द गिर्द उग आए थे
पर मैं !
सदियों से खड़ा एक द्रष्टा हूँ
राहगीरों को देखता हूँ
पक्षियों को सुनता हूँ
जवान वृक्षों के गर्वीले कद पर
नाज करता हूँ

फिर अपने कोटर पर नज़र जाती है
जहाँ हर नए मौसम में
एक नया घोंसला होता है
नए पंख
नई उड़ान
इंतज़ार राहगीरों का
नए मौसम का

पर सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
एक पहचान की
चाहता हूँ कोई आए
मेरा इतिहास बताये
जर्जर पत्तियों से
हरे होने की करवटों का
मर्म बताये ....

बहुत गुज़रे नाज़ से
अब तो अपनी पहचान चाहिए

42 टिप्‍पणियां:

  1. "एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ...." bahut badhiya kavita.. maarmik .. bimb ke maadhyam se kahi gai baat...

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  2. हर जड़ चेतन की पहचान,
    जीवन मरण, प्रकृति विधान।

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  3. bahut hi khubsurat rachna...
    bikul hi mann ko choo gayi aapki yeh rachna....
    mere blog par thode se bargad ki chhaun me awashya padharein....

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  4. pahchaan to jarurt hai...har kisi ke, jisne pala posa ho ya jo pala ho.......:)

    didi bahut khubshurat kavita!!

    जवाब देंहटाएं
  5. pahchaan to jarurt hai...har kisi ke, jisne pala posa ho ya jo pala ho.......:)

    didi bahut khubshurat kavita!!

    जवाब देंहटाएं
  6. pahchaan to jarurt hai...har kisi ke, jisne pala posa ho ya jo pala ho.......:)

    didi bahut khubshurat kavita!!

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  7. बहुत गुज़रे नाज़ से
    अब तो अपनी पहचान चाहिए
    सुन्दर बिम्ब संयोजन और भाव की रचना

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  8. आपने बिलकुल मर्म पर हाथ रख दिया है
    हमे पहचान चाहिए
    सही है
    पर उससे
    जिसकी अपनी एक सोच हो
    जिससे उसकी पहचान हो

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  9. "एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ...."
    बस इसी पहचान के लिये सारी उम्र गुजर जाती है………………भावनाओं को करीने से पिरोया है।

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  10. अपनी पहचान तो हर कोई चाहता है फिर जिसने सबको राह दिखाई हो ... उसे तो पहचान मिलनी ही चाहिए .... बहुत अच्छा लिखा है....

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  11. इंसान अपनी पहचान चाहता है ..वृक्ष के माध्यम से बहुत गंभीर बात कही

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  12. पहचान को ढूँढते सभी हैं,एक कविता के माध्यम से आपने सत्य को पारीभाषित किया है रश्मि जी, बहुत-बहुत शुक्रिया बेहतरीन रचना के लिये।

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  13. "जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये.."

    दर्द की सर्द लहर जैसी पंक्तियाँ...

    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं....

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  14. "जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये.."

    दर्द की सर्द लहर जैसी पंक्तियाँ....
    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत गुज़रे नाज़ से
    अब तो अपनी पहचान चाहिए

    -सुन्दर अभिव्यक्ति

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  16. पर सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
    एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ....

    बहुत गुज़रे नाज़ से
    अब तो अपनी
    bahut sundar ,har koi pahchan banana chahta hai .

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  17. पर सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
    एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ....

    ये पंक्तियाँ जान लगीं कविता की.. पुनः झूम के चली कलम..

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  18. सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
    एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ...
    बहुत शानदार रचना.

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  19. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    अब तो अपनी पहचान चाहिए

    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  20. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता! बधाई !

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  21. पर सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
    एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ..

    ता जिंदगी इसी चाहत में तो इन्सान की भी कटती है और हम हैं कि हम किसी और का इंतजार भी न कर अपनी ही पहचान बताने में सदा लगे रहते हैं, शायद विज्ञापन का दौर है............

    अति सुन्दर भावों से रची-बसी हमेशा कि तरह एक और उत्कृष्ट रचना

    हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  22. र सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
    एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ....

    किसी का मर्म तो लोग उसके जाने के बाद ही पहचान पाते हैं रश्मि जी जीते जी किसने किसी के गुणों को जाना है .....

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  23. Umra guzar jati h is sawaal ko jawaab pane me kya? aur mujhe laga k m hi thak gayi hu... lovely poem...

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  24. रश्मि जी, रचना बहुत ख़ूबसूरत है,
    आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया ...
    वटवृक्ष में रचना भेजने के लिए क्या करना है बताइए ... और रचना कौन सी होनी चाहिए, जो ब्लॉग में पोस्ट किये हैं वो या फिर कुछ नई ...

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  25. यही इतिहासबोध कहलाता है । एक पेड़ के बिम्ब मे यह अच्छी रचना ।

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  26. रश्मि जी, बहुत ही सुंदर कविता। आभार।
    http://sudhirraghav.blogspot.com/

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  27. पर सबसे अधिक प्रतीक्षा होती है
    एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये ....

    बहुत गुज़रे नाज़ से
    अब तो अपनी पहचान चाहिए
    didi prnam!
    bahut kuch kahti hai ye panktiyan ,
    sunder , bodh katati hai .
    saadar

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  28. "एक पहचान की
    चाहता हूँ कोई आए
    मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये'
    -पेड़ की व्यथा कथा के माध्यम से कही गयी गहन बात.
    हर कोई ढूंढता है अपनी पहचान खासकर जीवन के अंतिम दौर में .

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  29. मेरा इतिहास बताये
    जर्जर पत्तियों से
    हरे होने की करवटों का
    मर्म बताये .... best lines
    beautiful poem... as-always

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  30. क्या लिखती हैं आप ,बहुत सुंदर ,अपनी पहचान की चाहत बहुत दूर ले जाती है मानव को ।

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  31. समस्त गुनीजनो, विद्वजनों से सबकुछ कह दिया ....बस इतना ही कह पाऊंगा..दीदी जीवंत भावों से सरोबार आपकी लेखनी को नमन ! प्रणाम !!

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  32. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं

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  33. pehchan jo bataye wo sabse apna hota, kisi ko jan.na aur pehchaan.na mein jo bhed hai, aapki is kavita se spasht samjha ja sakta. shayad har insaan bhi yahi chahta.
    sundar abhivyakti, badhai.

    जवाब देंहटाएं

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