13 सितंबर, 2010

एक दिल मेरे पास रख जाओ


सपने में भी
अतीत के साए मुझे डराते हैं
अलग-अलग रास्तों पर
दहशत बनकर खड़े रहते हैं !
चीख ..अन्दर ही घुटकर रह जाती है
खुली आँखों में
फिर नींद नहीं आती !
सहलाती हूँ सर
गुनगुनाती हूँ लोरी
पर ये साए...
मुझे बीमार कर देते हैं !

रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
दर्द में डुबोती हूँ
.... कहना है वो दर्द
जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं
संभव हो
तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
मुझे बातें करनी हैं ...

48 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  2. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    .... कहना है वो दर्द
    जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं
    संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...

    best lines...

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  3. अकेलेपन से जूझती सी कविता ...मार्मिक प्रस्तुति ..

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  4. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    .... कहना है वो दर्द
    जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं
    संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं .

    क्या खूब कहा है..बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.

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  5. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    .... कहना है वो दर्द
    जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं
    संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं .

    बहुत ही भावप्रवण रचना !

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  6. संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...

    kitne gahre ahsaas chhupe hain in panktiyon me...bahut hi sundar

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  7. मुझे बातें करनी हैं ...

    आज बस...आमीन

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  8. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    .... कहना है वो दर्द
    जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं
    संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...
    beautiful!

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  9. इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    शैशव, “मनोज” पर, आचार्य परशुराम राय की कविता पढिए!

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  10. संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...
    jisse baaten karni hoti hai uski maujudagi hamesha mehsoos hoti hai.. bhavvibhor karti kavita ke liye badhai..

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  11. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  12. bhn rshmi ji kya becheni kaa izhaar he apko saahity or shbdon se kitna pyar he aek achchaa lekhn he bdhaayi ho . akhtar khan akela kota rajsthan

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  13. रोज
    दर्द की जिस स्‍याही में
    डुबोती हो कलम

    वह दवात ही तो मेरा दिल है।

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  14. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    .... कहना है वो दर्द
    जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं...
    दिल को छूने वाली रचना.

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  15. भावों को शब्दों में तराश कर रख देने में आप माहिर हैं ही...
    क्या कहूँ..

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  16. संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...

    गहरी नज़्म .. दर्द की दास्तान लिख दी है आपने ....

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  17. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    क्या कहूँ मार्मिक दिल को छूने वाली प्रस्तुति

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  18. संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...kya khoob ho jo ye mumkin ho .bahal jaaye aasaani se ....

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  19. एकाकी एवं अशांत मन की संवेदनाओं को कितनी खूबसूरती से अभिव्यक्ति दी है आपने !

    संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं !

    हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ ! अति सुन्दर !

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  20. उफ्फ.. दर्द उभर कर सामने आता है कविता से..

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  21. मार्मिक मन को छूने वाली प्रस्तुति......

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  22. बेकसी हद से जब गुजर जाये कोई ए दिल जिए कि मर जाए....और उसने जीने का फैसला कर लिया.
    और....ख्वाहिश आज भी रखती है तो दर्द की किरचों को अपने पास रखने को ...एक दिन के लिए ही सही?
    फिर वही जख्म और वही दर्द उभर आयेंगे .लहुलहान कर देंगे.
    दर्द रचनाकार की संपत्ति बन जाता है.धनवान हो .तभी मोती बांटती हो.एक मोती -सी ये है रचना भी.
    मेरे व्यूज़ आपको दुःख पहुंचाते हैं ना?
    हर पंक्ति पर बिना बात 'वाह वाह' करने वाले क्या सचमुच पढते भी हैं?
    मैं एक एक शब्द पढ़ती हूं,दोस्त!
    अपनी बुद्धि-लब्धि जितना समझ पाती हूं लिख देती हूं.आहत करने के लिए नही लिखती कमेन्ट.
    हाँ!डूबना जानती हूं,नही डूब पाती तो भी लिख देती हूं.शायद गलत हूं.माफ कर देना.दुखी होती तो नही आउंगी.
    ढेर सारा प्यार.

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  23. कहना है वह दर्द जिसकी किरचे मुझे लहूलुहान करती हैं ...
    मुझे बातें करनी है ...
    समझ आया असमय जागने का सबब ..
    गीत याद आ रहा है ...
    कहने को सब हैं अपने एक दुनिया चलती है
    छुप कर इस दिल में तन्हाई पलती है ..!

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  24. गहरी रचना!





    हिन्दी के प्रचार, प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है. हिन्दी दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद!!

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  25. bahut sundar kavita.... aap ki jitani tarifh ki jaye kam hai....
    dhanybad...

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  26. संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...

    दर्द को जुबान दे दी………………बहुत सुन्दर्।

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  27. रोज़ कलम से एक शब्द उठाती हूँ
    दर्द में डुबोती हूँ
    .... कहना है वो दर्द
    जिसकी किरचें मुझे लहुलुहान करती हैं
    संभव हो
    तो एक दिल मेरे पास रख जाओ
    मुझे बातें करनी हैं ...
    ........एक अव्यक्त दर्द को दिल की अतल गहराई में डुबोती सी..
    हिंदी दिवस की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

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  28. इतना घनघोर अकेलापन !!!
    मांगा भी तो क्या ... दिल ...वह भी बतियाने को !!
    एक सर्जक ही ऐसा कर सकता है.साधुवाद .

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  29. मार्मिक प्रस्तुति.

    यहाँ भी पधारें :-
    अकेला कलम...

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  30. रश्मि दी.
    बहुत अच्छा लिखा है आपने, ये पंक्तियाँ दिल को स्पर्श करती हैं ....
    "संभव हो तो एक दिल रख जाओ मेरे पास
    मुझे कुछ बातें करनी हैं"

    प्रणाम के साथ शुभकामनाएं....

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  31. आदरणीया रश्मि दी,-----दर्द की भी अपनी सुन्दरता है और उसे शब्द देना ही कवि की विशेषता। बहुत अच्छी लगी यह कविता।

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  32. bohot bohot khoobsurat rachna.....toooooo good.

    aapko padhkar khud ko kisi kaabil mehsoos kiya

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  33. आज बज़ पर फिर ..एक बार फिर इसे पढा.आपकी उन कविताओ में से एक है जो सचमुच मेरे दिल को छू जाती है हर बार .
    दर्द में डूबा कर लिखती हो तभी हर बार दर्द में डूबी मिलती है और मेरे मन और आँखों में इसकी नमी छोड़ जाती है.
    एक बात कहूँ? मानोगी?
    'तुम अपना रंजो गम अपनी परेशानी मुझे दे दो तुम्हे इस दिल की कसम इसकी पशेमानी मुझे दे दो'
    बहुत सहे गमे दुनिया मगर उदास ना हो.
    मैं विचलित हो जाती हूँ,जब भी ऐसा कुछ पढती हूँ आपके ब्लॉग पर. कई ब्लोगर्स ने बताया कि वे अपनी नही दुनिया की देखी,सही गई लिखते हैं अपनी कविताओ में.नही जानती मैं ये सब.मैं रचना में सिर्फ रचनाकार का प्रतिबिम्ब देखती हूँ.मेरे लिए रचने,कविताये शब्दों का खेल नही कि शब्द इधर उधर रखे और कविता लिख दी.मेरे लिए वो मन की प्रतिध्वनी है रचनाकार की.
    आपकी इस प्रतिध्वनि ने मुझे रात दो बजे तक नही सोने दिया.
    ऐसिच हूँ मैं सच्ची.

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  34. सुंदर कविता, मनभावन चित्र और अंतिम पंक्ति में मानो उँडेल डाला है अपना दिल आपने| बधाई| कभी कभी सिर्फ़ ४ शब्द भी कितने गहरे चोट करते हैं ना..........................................................?

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  35. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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