30 जुलाई, 2010

मेरे घर आना




तमाम घरों में बड़े बड़े ताले लगे होते हैं
एक सख्त लोहे का ग्रिल
दरवाज़े पर एक होल
घंटी बजे तो देख लो
कौन है !
बड़ा खतरा है- जाने कब क्या हो जाये !
बेशकीमती सामानों से घर भरा है
मामूली चीजों की तो कोई औकात नहीं
वही चीजें हों
जिनकी कीमत आसमान छुते हों
और सबसे अलग हों
अब घर के रंग रूप ही बदल गए हैं
सामान -
प्रदर्शनी में रखे अदभुत वस्तु लगते हैं
रहनेवाले लोग कांच के नज़र आते हैं
पॉलिश इतनी ज़बदस्त
कि फिसलन ही फिसलन
बड़े तो बड़े , छोटों की अदा पर
आँखें विस्फारित रहती हैं !
क्या है असली, क्या है नकली
कोई जोड़ घटाव नहीं
अंग्रेजों की गुलामी से अलग
सब अपनी कामनाओं के गुलाम हो गए हैं
तुम.. तुम.. तुम
कोई भी संतुष्ट नहीं
रात बेचैनी में गुज़रती है
दिन मुखौटों में .............

ऐसी दहशत में
मैंने अपने घर के दरवाज़े खोल दिए हैं
मेरे घर में बेशकीमती चीजें नहीं
अनमोल एहसास हैं
एक संदूक - यादों की
एक संदूक - मासूम सपनों की
एक संदूक- मुस्कान की
हर कमरे में मैंने उन दुआओं को मुखरित किया है
जिनसे रिश्तों की गर्माहट बनी रहती है
जब हार जाओ बाज़ी लक्ष्यहीन दौड़ की
तो बेख़ौफ़ यहाँ आना
एहसासों के मध्य लम्बी साँसें लेना
फिर मुड़ना
तुम्हें अपने वे सपने दिखाई देंगे
जिनमें सिर्फ असली रंग भरे थे
एक बार -
मेरे घर आना !...

28 जुलाई, 2010

हम कुछ भी कर सकते हैं


अचानक हम बहुत अकेले हो गए हैं
सच है कि इस अकेलेपन में
हमारी ही जीत है
सफलता है
भविष्य है
हमारी शुरुआत है ...
पर !
अकेले चले नहीं
तो घड़ी की सूई थम गई है
सोच की दिलचस्प उड़ान
रुक गई है
खिलखिलाते झरने का पानी
सूख चला है
तब हम क्या करें !
चलो खूब बातें करते हैं
इतनी कि हमारे शहर चलने लगें
और करीब हो जाएँ
भरोसा है न खुद पर ?
"हम कुछ भी कर सकते हैं ..."

21 जुलाई, 2010

जल्दी आओ ...




मन उदास रहता है
कई बार...
हवा की खुशनुमा चपल चाल भी
अच्छी नहीं लगती
ज़मीन पर पाँव रखने का
चलने का दिल नहीं होता
अपने सारे प्रिय खिलौने
सहमे-सहमे नज़र आते हैं
मोबाइल हाथ में लिए
देखती रहती हूँ ...
किसका नंबर घुमाऊं
पर रुक जाती हूँ !
पता नहीं क्या कर रहे होंगे
परेशान होंगे
व्यस्त होंगे !
और मैं कहूँगी भी क्या ?
कि हवा अच्छी नहीं लगती ..
सब हँसेंगे
'ये क्या बात हुई '
पर क्या यह सहज बात है ?
सब हवा को तरस रहे
और मैं हवा से बेज़ार हूँ
यह तो एक बीमारी हो गई !
कारण?
कौन ढूंढेगा ?
और ढूंढ भी लिया तो इलाज !
न हवा को समझाया जा सकता है
न मुझे बहलाया जा सकता है
(बहल जाने की उम्र होती है) !

ऐसे में -
चल मन
एक छोटा सा ब्रेक लेते हैं
जिन नंबरों को घुमाना चाहती हूँ
उन्हें पास बुलाते हैं
बेसिर पैर की बातें करते हैं
और एक कमरे में
बेतुकी बातों पर हँसते-हँसते सो जाते हैं
.............
सुबह की चाय तब बनेगी
जब नींद पूरी होगी
जब सब साथ हों
तो एक चाय भी बिना तू तू मैं मैं के
कहाँ स्वादिष्ट होती है !

तो देर किस बात की ?
हलो ...
(ख़ास नाम ख़ास लोगों को पता है)
कोई सवाल नहीं ,
जल्दी आओ ...

14 जुलाई, 2010

कुछ तो है


मुझे नहीं मालूम
नशीली आँखों का राज़
पानी भी मयस्सर नहीं था जिसे
उसे नशे की क्या पहचान !
मुझे नहीं पता
आज सूरज क्यूँ निकला है
चर्चा तो यही थी कि
अँधेरे का साम्राज्य होगा
इस तरह अचानक
सूरज दोस्त बनेगा
गुमां न था ....
सात घोड़े के रथ पे सवार
भाग्य का शंखनाद करता सूरज
परिक्रमा कर रहा है
एक ही धुन , एक ही राग-
अब सूरज कभी अस्त नहीं होगा ... !

मुझे नहीं मालूम
मेरे रोम-रोम में
इन आँखों ने क्या जादू किया है
पर कुछ तो है ..
जिसने सुरक्षा कवच की तरह
मेरा हाथ थामा है
कुछ है,
जिसने बिना स्पर्श के
मुझे रोमांचित किया है

नहीं जानती - सत्य और असत्य
सही और गलत
स्वप्न और यथार्थ
पर कुछ तो है
जो मेरी धडकनें सुनाई देने लगी हैं
कुछ तो है
तभी तो
आत्मा परमात्मा को छू लेने को व्याकुल है

09 जुलाई, 2010

आज को जियो


आज को जीना चाहते हो
तो उस आज को जियो
जो रात तुम्हारे सिरहाने की बेचैनी ना बने
उधेड़बुन और जोड़ घटाव में
सुबह ना हो जाये
और वह आज एक प्रश्न ना बन जाये...

अतीत को उतना ही भूलो
जितनी ज़रूरत हो
अतीत को जेहन में ना रखा
तो आज को तराश नहीं पाओगे !
...
जो कहते हैं अतीत को भूल जाओ
उनसे दूरी बनाकर चलो
याद रखो-
वे जिस सबक को भूल जाने की सलाह देते हैं
अपने आल्मीरे के लॉकर में
उसे संभालकर रखते हैं ...

और भविष्य !
आज ही तुम्हारा भविष्य है
आज को संवारो
आज हंसो
आज को जियो....
कल को भविष्य माना तो एक ही सार होगा
तुमने क्या पाया?
तुम्हारा क्या गया जो रोते हो !!!

रामायण तुम्हें सुनाते हैं

http://www.youtube.com/watch?v=myx8Lb5NAes

03 जुलाई, 2010

मंजिल के लिए




कहीं कोई अंतर ही नहीं,
सारे रास्ते दर्द के
तुमने भी सहे
हमने भी सहे
तुमको एक तलाश रही
मेरे साथ विश्वास रहा

'कौन है ये?' तुम चौंकते रहे
तुम साथ हो तो सही ...
सोचकर मैं शक्ति का पर्याय बनी
दर्द ने तुम्हारे अस्तित्व को डगमगा दिया
दर्द ने मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान दी
दर्द ने तुम्हें सजग बनाया
दर्द ने मुझे गंगा यमुना के मध्य
सरस्वती बनाया (जो हो ,पर दिखे नहीं)....

तुम्हारे मन का कोई संशय
मुझे विचलित नहीं करता
गहरे घाव एक बार में नहीं भरते ...!
मेरे घाव गहरे तो हैं
पर मरहम इतने असली रहे
कि आंसू भी खिलखिलाकर बहे....

दर्द का पलड़ा मेरा भारी रहा
शरीर और मन दोनों की हत्या हुई
तुम्हारे अस्तित्व का अनादर हुआ
और तुमने स्वयं शरीर और मन को मार दिया
शुक्र है ,
मैं मरी नहीं
मेरी साँसों ने मुझे गीता का उपदेश दिया
तुम्हारी रूकती साँसों तक पहुँचने का मार्ग दिया
अब ना तुम अकेले हो ,
ना अस्तित्वहीन ....

सत्य ये है----
कि तुम शक्ति का स्रोत हो
शिव का त्रिनेत्र
जिसके लिए वक़्त मुक़र्रर था

'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
बिना किसी शस्त्र के
बिना चक्रव्यूह के
बिना किसी छल के
.............................
रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
काफी है मंजिल के लिए

01 जुलाई, 2010

बदले रूख



अपनी डायरी के वे पन्ने
जो मेरे सपनों में फड़फड़ाते हुए
पृष्ठ दर पृष्ठ मुझे डराते थे
उन्‍हें मैंने तुम्हारे सुरक्षा के घेरे में रख दिया है
और खुद लौट गई हूँ
परी लोक में ..
मेरे नए पंख मुझसे कह रहे हैं
'एक लम्बी उड़ान
आज तुम्हारे हाथ है'
सम्पूर्ण आकाश, चाँद
आज फिर मेरे दोस्त हैं
आज फिर
मेरी आँखों की झील में
मासूम नन्हें नन्हें ख्याल हैं
किसी बच्चे के हाथों बनी
कागज़ की नाव जैसे
आज
इस नाव के डूबने का कोई खतरा नहीं
आँधियों ने रुख बदल लिया है
कोई पास बैठा लिख रहा है
एक महाकाव्य -- मेरे नाम

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...