24 मार्च, 2010

मैं कुछ नहीं !



चलते-चलते
सांय-सांय सी ख़ामोशी
और वक़्त के आईने में मैं !
बहुत धुंधला नज़र आता है सबकुछ
डर लगता है !
जीत की ख़ुशी
और अल्पना पर
प्रश्नों के रंग बिखरे होते हैं...

आदत है सहज हो जाने की
वरना..
कुछ भी तो सहज नहीं !
हर कमरे में
डर और शोर का अंदेशा..
स्वाभाविक ज़िन्दगी के साथ
सहज रिश्ता नहीं लगता
खुद पर शक होता है
जी रहे हैं
या भाग रहे हैं !
छलावे -सी ज़िन्दगी के
अलग-अलग सांचों से गुजरना
जीना नहीं कहते
ना ही यह ठहराव है ..

मुझे लगता रहा
मैंने ज़िन्दगी में रंग भर लिए
पर वक़्त कहता है-
मैं कुछ नहीं
सारे अल्फाज़ झूठे हैं मेरे !

वक़्त के इस बयान पर
सांय-सांय सी एक ख़ामोशी
मुझे घेर लेती है
और मैं -
दूर-दूर तक
नज़र नहीं आती !

20 मार्च, 2010

दिल की बात !


मेरा दिल करता है
तुम्हें अमलतास का पेड़ बना लूँ
किसी गांव की अल्हड़ बाला सी
तुमको पकड़कर
घूमती जाऊँ घूमती जाऊँ
जब तक तुम्हारी शाखाएं
मुझे थाम न लें ...

06 मार्च, 2010

अपर्णा की तलाश


ये दो नज्में इमरोज़ जी ने भेजी है...........एक अपर्णा की है, और दूसरी नज़्म अपर्णा की नज़्म के जवाब में इमरोज़ की है .
अपर्णा का पता उनसे खो गया और वे यह नज़्म उसे भेज नहीं सके......यह उनका प्रयास है मेरे द्वारा उन्हें ढूँढने का......मुझे
विश्वास है- यह प्रयास सफल होगा, जो उनकी नज़्म से वाकिफ होंगे उनके द्वारा अपर्णा तक यह बात पहुंचेगी..


अमृता
कल सपने में
मैं तुम्हारे प्रेमी से
मिलने जा रही थी
लेकिन
सपना टूट गया
और मिल नहीं पायी !
मैं मायूस हो गई
फिर मैंने दूसरा सपना देखा-
सपने में मैं सोकर उठी
तो सामने देखा- तुम्हारा प्रेमी !
मैंने आँखें बन्द कर लीं
फिर खोलीं
सामने था -मेरा प्रेमी !
मैंने फिर आँखें बन्द कीं
फिर खोलीं
फिर सामने - तुम्हारा प्रेमी !
पूरे सपने में यह सिलसिला चलता रहा
दोनों मुझे प्यार से देखते रहे !
अब आज तुम्हारा प्रेमी
मेरा प्रेमी बन गया है
और तुम
अ--मृता हो मुझमें !

अपर्णा


एक अमृता
तो मैं अब भी
जी रहा हूँ...
प्यार की खुशबू - अमृता ......

अमृता से अपर्णा तक
और ना जाने
कितने दिलों तक फैली हुई
ये खुशबू
कभी चाहत बनकर
कभी सपना बनकर
खामोश
पर जी रही है ....

इस अमृता का
कभी राधा नाम रहा
कभी मीरा
कभी हीर कभी सोहणी
और एक अपर्णा भी है ...

नाम ही बदलते हैं
प्यार नहीं बदलता ...

इमरोज़

04 मार्च, 2010

मेरी फितरत


विपरीत लहरों पर तैरना
मेरी फितरत रही
हादसों में ख़ुशी तलाशना
मेरी फितरत रही
आंसुओं के मध्य
आबेहयात मिलना
मेरी फितरत रही
तभी-
ज़िन्दगी मेरे साथ है

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...