28 सितंबर, 2009

एक खेल !




आओ खेलें....
तुम एहसास,
वह दर्द,
वह कागज़,
मैं कलम.............
- दर्द का एहसास
लिख तो दिया है
पर सुनाऊं किसे?.....
दर्द को सुनाना आसान नहीं
कौन समझेगा
और क्यूँ समझेगा?
हर किसी के पन्ने पर
दर्द के धुले अक्षर हैं
उसको पढने,समझने की
नाकाम कोशिश ही बड़ी जटिल है
तो अपने दर्द की क्या बिसात !
............................................
चलो खेलते हैं,
पानी का खेल .............
तुम नाव बनना
मैं पतवार बन जाउंगी
वह पानी,वह भंवर.........
पानी की कलकल सतह पर
पतवार के सिरे से
एक गीत लिखूंगी........
हाँ- तब होगी शाम
और एक धुन लेकर
हम अपने-अपने घोंसले में
लौट जायेंगे
अपने-अपने हिस्से की नींद की खातिर
अपने मासूम सपनों की खातिर
तुम लोरी बन जाना
मैं भी बन जाउंगी लोरी
वह भी,वह भी
...........
तब होगी एक नयी सुबह
नयी चेतना,
नया विश्वास,
नयी उम्मीदें
नए संकल्प.........................


--

24 सितंबर, 2009

आइये हम उनके लिए दुआ करें.........


मेजर गौतम (http://gautamrajrishi.blogspot.com/)
, वह शक्स - जिसकी हाथ में कलम भी, तलवार भी,जिसकी रगों में करुणा भी,दुश्मनों के दाँत खट्टे करने का हौसला भी.......
दुश्मन ने उन्हें घायल करके हमारी बददुआ ली है........आइये हम उनके लिए दुआ करें.........

22 सितंबर, 2009

अकेलापन........


अकेलापन..........
घंटों मुझसे बातें करता है
भावनाओं को तराशता है
जीने के लिए
मुठ्ठियों में
चंद शब्द थमा जाता है...........

15 सितंबर, 2009

प्यार का सार !


दस्तकें यादों की
सोने नहीं देतीं
दरवाज़े का पल्ला
शोर करता है
खट खट खट खट.......
सांकल ही नहीं
तो हवाएँ नम सी
यादों की सिहरन बन
अन्दर आ जाती हैं
पत्तों की खड़- खड़
मायूस कर जाती हैं !
कुछ पन्ने मुड़े-तुड़े लेकर
अरमानों की आँखें खुली हैं
एक ख़त लिख दूँ.....
संभव है दस्तकों की रूह को
चैन आ जाए
हवाएँ एक लोरी थमा जाए
भीगे पन्ने
प्यार का सार बन जायें ...............................

09 सितंबर, 2009

एक प्याली ख्वाब !




एक प्याली ख्वाब
थोडी मीठी
थोडी नमकीन
जब भी पीती हूँ
अन्दर में सप्तसुरों के राग बजते हैं
ढोलक की थाप पर
घुंघरू मचलते हैं
ख़्वाबों की सुनहरी धरती पर
ख़्वाबों का परिधान पहने
महावर रचे पांव थिरकते हैं
एक प्याली ख्वाब....
सौ ख़्वाबों की रंगीनियत दे जाती है !

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...