28 जनवरी, 2008

सौभाग्य ...



उपदेशक को नहीं भाता
उपदेश सुनना!
उपदेश देना उनका जन्म सिद्ध अधिकार होता है ...!!!
अक्सर ऐसा होता है
कि,
तथाकथित कर्मठ लोग
किसी के बहते खून से विचलित नहीं होते
दबाकर खून बंद करने की सलाह देते हैं
या अन्यमनस्क आंखों से
शब्दहीन घूरते रहते हैं.......
पर ऐसे कर्मठ भूशाई हो जाते हैं -
एक "फुंसी" से!
चेहरे की चमक गुम हो जाती है
सन्नाटा -सा छा जाता है
और सारे कर्मठ उनके इर्द -गिर्द बैठ जाते हैं
दर्द बाँट लेने को.......

ऐसे ही हालात थे
कुरुक्षेत्र के मैदान में
कर्तव्य,रिश्तों की रास थामे
पूरी सेना
दुर्योधन के साथ खड़ी थी,
और अर्जुन ने गांडीव नीचे रख दी थी!
रिश्तों की मर्यादा ,
संस्कारों के स्वर
बस अर्जुन के आगे खड़े थे....
सौभाग्य था_
गीता समझाने को
शक्ति बन श्री कृष्ण वहीं अड़े थे
और
सत्य की जीत की खातिर
पितामह बाणों की शय्या पर
जीवित रहे थे !!!!!!!!!!!..........

9 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achha likha hai massi...sabse achha jo likha hai arjun ji ke pass bhagwan krishn the unhe samjhane ke liye....i wish ki sabke pass koi na koi hota jab wo aise dorahe pe khada hota...

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  2. "सत्य की जीत की खातिर
    पितामह बाणों की शय्या पर
    जीवित रहे थे" .................

    ye sobhaagy us kaal ka tha, jab pitamaah the...
    ya us niti ka jisne aise sanskaar gade the.....

    duryodhan hain....arjun bahut...updeshak bhi saath khade hain..
    par saty ki khatir jo shayya pe jaaye....kyun wahi maanas hamse door khade hain...

    sobhaagy hamaaraa...ki aapki kalam ne hame ye shabd diye....saty ka yug-darshan karwaa diyaa...Naman Di!

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  3. bohot achhi likhi hai :)
    amma vali se jada achi lagi ye :P

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  4. मुझे तो कृष्ण से शिकायत ज्यादा रही है ,
    पर आपकी रचना उनके स्थापित रोल को बखूबी निभाती है..

    जवाब देंहटाएं
  5. सत्य की जीत की खातिर
    पितामह बाणों की शय्या पर
    जीवित रहे थे !!!!!!!!!!!..........

    satya hai yah......kisi ko to aahuti deni hi hoti hai satya ko jivit rakhne ke liye........mujhe krishn bilkul bhi prabhavit nahi karte....isliye kahunga ki rachna ka pahla bhag bahut achchha hai.......dusre ki apeksha
    itni achchhi baatein likhne ke liye sadhuwaad

    avinash

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  6. bahut acchi kavita hai..
    सत्य की जीत की खातिर
    पितामह बाणों की शय्या पर
    जीवित रहे थे !

    bilkul sahi

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी !!सौभाग्य!! मानो कई युगांतर का सफर तय करती हुई प्रतीत होती है १कुरुक्शेत्र के अर्जुन का था की उसे खुद को देखने के अर्जुन के विराट प्रकाश की ज्योति मिली! तो आज महाभारत कुरु क्षेत्र से निकल कर साडी दुनिया में फ़ैल चूका है !आज कोई दुहशासन बन कर द्रौपदी की तलाश में है तो कोई अर्जुन बनने के लिए कृष्ण की खोज कर रहा है..जो बाकि बचे वो धृत राष्ट्र की भूमिका में ही जीवन को अर्थ और मर्म तलाश रहे हैं !
    सौभाग्य इस कलयुग का हर महा भारत की पृष्ठ भूमि में कृष्ण मुख से उपदेश का सुगन्धित विष बहा रहे हैं और आँखों से चीर हरण के दृश्य का रस पान कर रहे हैं..
    !!! बेशक आपकी कविता जो आपकी रचना धर्मिता नजर आती है..वो एक सच्चे अर्जुन की आवाज है !!! जो कह रही है की इस कलयुगी / युगांतर महाभारत में विजय उसी अर्जुन को मिलेगी जिसने अपनी आत्मा को ही कृष्ण मन है और अंतरात्मा को कृष्ण की गीता का सार...
    ****बहुत-२ बधाई और शुभकामनाएं रश्मिजी...! ****
    ......desh.

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  8. आपकी !!सौभाग्य!! मानो कई युगांतर का सफर तय करती हुई प्रतीत होती है १कुरुक्शेत्र के अर्जुन का !!सौभाग्य!! था की उसे खुद को देखने के लिए अर्जुन के विराट प्रकाश की ज्योति मिली! तो आज महाभारत कुरु क्षेत्र से निकल कर सारी दुनिया में फ़ैल चूका है !आज कोई दुहशासन बन कर द्रौपदी की तलाश में है तो कोई अर्जुन बनने के लिए कृष्ण की खोज कर रहा है..जो बाकि बचे वो धृत राष्ट्र की भूमिका में ही जीवन को अर्थ और मर्म तलाश रहे हैं !
    सौभाग्य इस कलयुग का की यंहा हर महाभारत की पृष्ठ भूमि में कृष्ण अपने मुख से उपदेश का सुगन्धित विष बहा रहे हैं और आँखों से चीर हरण के दृश्य का रस पान कर रहे हैं..
    !!! बेशक आपकी कविता में जो आपकी रचना धर्मिता नजर आती है..वो एक सच्चे अर्जुन की आवाज है !!! जो कह रही है की इस कलयुगी / युगांतर महाभारत में विजय उसी अर्जुन को मिलेगी जिसने अपनी आत्मा को ही कृष्ण माना है और अपनी अंतरात्मा को कृष्ण की गीता का सार...
    ****बहुत-२ बधाई और शुभकामनाएं रश्मिजी...! ****
    ......desh.

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